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\stitle{go zaraa sii baat par baraso.n ke yaaraane gae}
\singers{Khatir Gaznavi}



गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए

गर्मी-ए-महफ़िल फ़क़त इक नारा-ए-मस्ताना है
और वो ख़ुश हैं कि इस लहफ़िल से दीवाने गये

मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुस्वाई कहूँ
मुझसे पहले उस गली में मेरे अफ़साने गए

यूँ तो वो मेरी रग-ए-जाँ से भी थे नज़दीक तर
आँसूओं की धुँध में लेकिन न पहचाने गए

वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़दार हो गैइं
हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए

अब भी उन यादों की ख़ुश्बू ज़ेहन में महफ़ूस है
बारहा हम जिन से गुलज़ारों को महकाने गये

क्या क़यामत है कि 'ख़तिर' कुश्ता-ए-शब भी थे हम
सुब्ह जब हुई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए