ACZoom Home E-mail ITRANS ITRANS Song Book

% khwaja05.s isongs output
\stitle{chaman me.n subah ye kahatii thii ho kar chashm-e-tar shabnam}
\singers{Khwaja Mir Dard #5}



चमन में सुबह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम
बहार-ए-बाग़ तो यूँ ही रही लेकिन किधर शबनम

अर्क़ की बूंद उस की ज़ुल्फ़ से रुख़सार पर टपकी
ताज्जुब की है जागे ये पड़ी ख़ुर्शीद पर शब्नम

हमें तो बाग़ तुझ बिन ख़ाना-ए-मातम नज़र अया
इधर गुल फारते थे जेब, रोती थी उधर शबनम

करे है कुछ न कुछ तासीर सोहबत साफ़ ताबों की
हुई आतिश से गुल के बैठते रश्क़-ए-शरर शब्नम

भला तुक सुबह होने दो इसे भी देख लेवेंगे
किसी आशिक़ के रोने से नहीं रखति ख़बर शब्नम

नहीं अस्बाब कुछ लाज़िम सुबक सारों के उठने को
गैई उड़ देखते अपने बग़ैर अज़ बाल-ओ-पर शब्नम

न पाया जो गया इस बाग़ से हर्गिज़ सुराग़ उसका
न पल्टी फिर सबा इधर, न फिर आई नज़र शब्नम

न समझा डर्द हमने भेद याँ की शादी-ओ-ग़म का
सहर खन्दान है क्योँ रोती है किस को याक कर शबनम