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\stitle{jhuuThii sachchii aas pe jiinaa kab tak aaKhir kab tak}
\singers{Kashif Indori}
झूठी सच्ची आस पे जीना कब तक आख़िर कब तक
मय की जगह ख़ून-ए-दिल पीना कब तक आख़िर कब तक
सोचा है अब पार उतरेंगे या टकरा कर डूब मरेंगे
तूफ़ानों की ज़द पे सफ़ीना कब तक आख़िर कब तक
एक महीने के वादे पर साल गुज़ारा फिर भी न आये
वादे का ये एक महीना कब तक आख़िर कब तक
सामने दुनिया भर के ग़म हैं और इधर इक तनहा हम हैं
सैकड़ों पत्थर इक आईना कब तक आख़िर कब तक