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\stitle{junuun-e-shauq ab bhii kam nahii.n hai}
\lyrics{Majaz}
\singers{Majaz}
जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है
मगर वो आज भी बरहम नहीं है
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तेरी ज़ुल्फ़ों को पेच-ओ-ख़म नहीं है
बहुत कुछ और भी है जहाँ में
ये दुनिया महज़ ग़म ही ग़म नहीं है
मेरी बरबादियों के हमनशिनों
त्म्हें क्या ख़ुद मुझे भी ग़म नहीं है
अभी बज़्म-ए-तरब से क्या उठूँ मैं
अभी तो आँख भी पुरनम नहीं है
"ंअजज़" एक बादाकश तो है यक़ीनन
जो हम सुनते थे वो आलम नहीं है