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\stitle{Ta'arruf}
\singers{Majaz #12}



ख़ूब पहचान लो "आस्रर" हूँ मैं
जिन्स-ए-उल्फ़त का तलब-गार हूँ मैं

इश्क़ ही इश्क़ है दुनिया मेरी
फ़ितना-ए-अक़्ल से बेज़ार हूँ मैं

छेड़ती है जिसे मिज़राब-ए-अलम
साज़-ए-फ़ितरत का वही तार हूँ मैं

ऐब जो हाफ़िज़-ओ-ख़य्याम में था
हाँ कुछ इस का भी गुनहगार हूँ मैं

ज़िंदगी क्या है गुनाह-ए-आदम
ज़िंदगी है तो गुनहगार हूँ मैं

मेरी बातों में मसीहाई है
लोग कहते हैं कि बीमार हूँ मैं

एक लपकता हुआ शोला हूँ मैं
एक चलती हुई तलवार हूँ मैं