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\stitle{saare badan ka Khuun pasiine me.n jal gayaa}
\singers{Mahmood Durrani}



सारे बदन क ख़ून पसीने में जल गया
इतना चले के जिस्म हमारा पिघल गया

चलथे कि गिन रहे थे मुसीबात के रात दिन
दम लेने हम जो बैठ गये दम निकल गया

अच्छा हुआ जो राह में ठोकर लगी हमें
हम गोर पड़े तो सारा ज़माना सम्भल गया

वहशत में कोई साथ हमारा न दे सका
दामन की फ़िक्र की तो गरेबाँ निकल गया