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\stitle{baat kyaa aadamii kii ban aaii}
\lyrics{Meer Taqi Meer}
\singers{Meer Taqi Meer}



बात क्या आदमी की बन आई
आस्माँ से ज़मीन नपवाई

चरख ज़न उसके वास्ते है मदाम
हो गया दिन तमाम रात आई

माह-ओ-ख़ुर्शीद-ओ-बाद सभी
उसकी ख़ातिर हुए हैं सौदाई

कैसे कैसे किये तरद्दद जब
रंग रंग उसको चीज़ पहुँचाई

उसको तरजह सब के उपर दे
लुत्फ़-ए-ःअक़ ने की इज़्ज़त अफ़ज़ाई

हैरत आती है उसकी बातें देख
ख़ुद सारी ख़ुद सताई ख़ुद राई

शुक्र के सज्दों में ये वाजिब था
ये भी करता सज्दा जबीं साई

सो तो उसकी तबीयत-ए-सर्कश
सर न लाई फ़रो के तुक लाई

'ंएएर' ना चीज़ मुश्त-ए-ख़ाक आल्लाह
उन ने ये किबरिया कहाँ पाई