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\stitle{nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa}
\singers{Miraji #2}



नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

अपनी बीती जग बीती है जब से दिल ने जान लिया
हँसते हँसते जीवन बीता रोना धोना भूल गया

अँध्यारे से एक किरन ने झाँक के देखा शर्माई
धुँध सी छब तो याद रही कैसा था चेहरा भूल गया

हँसी हँSई में खेल खेल में बात की बात में रंग गया
दिल भी होते होते आख़िर घाव का रिसना भूल गया

एक नज़र की एक ही पल की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा जब एक पल बीता भूल गया

जिस को देखो उस के दिल में शिअवा है तो इतना है
हमें तो सब कुछ याद रहा पर हम को ज़माना भूल गया

कोई कहे ये किस ने कहा था कह दो जो कुछ जी में है
"ंइरजि" कह कर पछताया और फिर कहना भूल गया