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\stitle{phuul the baadal bhii thaa aur vo hasii.n suurat bhii thii}
\singers{Munir Niazi #11}
फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
दिल में लेकिन और ही एक शक़्ल की हसरत भी थी
जो हवा में घर बनाये काश कोई देखता
दश्त में रहते थे पर तामीर की आदत भी थी
कह गया मैं सामने उस के जो दिल का मुद्द'अ
कुछ तो मौसम भी अजब था कुछ मेरी हिम्मत भी थी
अजनबी शहरों में रहते उम्र सारी कट गई
गो ज़रा से फ़ासले पर घर की हर राहत भी थी
क्या क़यामत है "ंउनिर" अब याद भी आते नहीं
वो पुराने आश्ना जिन से हमें उल्फ़त भी थी