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% mumtazmirza03.s isongs output
\stitle{kaisaa chalan hai gardish-e-lail-o-nahaar kaa}
\singers{Mumtaz Mirza}
% Contributed by Fayaz Razvi



कैसा चलन है गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार का
शिकवा हर एक को है ग़म-ए-रोज़गार का

टूटी जो आस जल गये पल्कों पे सौ चिराग़
निखरा कुछ और रंग शब-ए-इन्तज़ार का

इस ज़िंदगी ई हम से हक़ीक़त न पूछिये
इक जब्र जिस को नाम दिया इख़्तियार का

ये कौन आ गया मेरी बज़्म-ए-ख़याल में
पूचा मिज़ाज किसने दिल-ए-सोग़वार का

देखो फिर आज हो न जाये कहीं ख़ून-ए-ऐतमाद
देखो न टूट जाये फ़ुसूँ ऐतबार का