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% mwarsi03.s isongs output
\stitle{ab ke barasaat kii rut aur bhii bha.Dakiilii hai}
\singers{Muzaffar Warsi}
% Additions by: Fayaz Razvi



अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है

%[qabaa = saamane se khulaa huaa lambaa coat]

सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा
लोग भी काँच के हैं, राह भी पथरीली है

शिद्दत-ए-कर्ब में तो हँसना कर्ब है मेरा
हाथ ही सख़्त हैं ज़ंजीर कहाँ ढीली है

गर्द आँखों में सही दाग़ तो चेहरे पे नहीं
लफ़्ज़ धुँधले हैं मगर फ़िक्र तो चमकीली है

घोल देता है सम'अत में वो मीठा लहजा
किस को मालूम के ये क़िंद भी ज़हरीली है

पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उस ने
अब ये कहता है के रंगत ही मेरी पीली है

मुझको बे-रंग ही न करदे कहीं रंग इतने
सब्ज़ मौसम है, हवा सुर्ख़, फ़िज़ा नीली है

मेरी परवाज़ किसी को नहीं भाती तो न भाये
क्या करूँ ज़ेहन "ंउज़फ़्फ़र" मेरा जिबरीली है