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\stitle{lab-e-Khaamosh se izahaar-e-tamannaa chaahe}
\singers{Muzaffar Warsi}



लब-ए-ख़ामोश से इज़हार-ए-तमन्ना चाहे
बात करने को भी तस्वीर का लहजा चाहे

तु चले साथ तो आहट भी न आए अपनी
दरमियाँ हम भी न हो यूँ तुझे तन्हा चाहे

ज़ाहीरी आँखों से क्या देख सकेगा कोई
अपने बातों पे भी हम फ़ाश होना चाहे

जिस्म-पोशी को मिले चादर-ए-अफ़्लाक हमें
सर छुपाने के लिये वुस'अत -ए-सेहरा चाहे

ख़्वाब में रोये तो एहसास हो सैराबी का
रेत पर सोयें मगर आँख में दरिया चाहे

भेँट चड़ जाऊँ न मैं अपने ही ख़ैर-ओ-शर की
ख़ून-ए-दिल ज़ब्त करे ज़ख़्म तमाशा चाहे

ज़िंदगी आँख से ओझल हो मगर ख़त्म न हो
एक जहाँ और पस-ए-पर्दा-ए-दुनिया चाहे

आज का दिन तो चलो कट ही गया जैसे भी कटा
अब ख़ुदा-बंद से ख़ैरियत-ए-फ़र्दा चाहे

ऐसे तैराक भी देखे हैं 'ंउज़फ़्फ़र' हमने
ग़र्क़ होने के लिये भी जो सहरा चाहे