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\stitle{phir is duniyaa se ummiid-e-vafaa hai}
\singers{Naresh Kumar Shad #3}
फिर इस दुनिया से उम्मीद-ए-वफ़ा है
तुझे ऐ ज़िंदगी क्या हो गया है
बड़ी ज़ालिम निहायत बेवफ़ा है
ये दुनिया फिर भी कितनी ख़ुश-नुमा है
हर इक अपने ही ग़म में मुब्तिला है
किसी के दर्द से कौन आश्ना है
मेरे नक़्क़ाद मेरी शायरी तो
मेरे टूटे हुये दिल की सदा है
कहाँ हूँ "षद" मैं तो शाद सा हूँ
वो शाद-ए-ख़ुश-नवा तो मर चुका है