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\stitle{chhalakatii aae ke apanii talab se bhii kam aae}
\singers{Asrar Narvi #2}



छलकती आए के अपनी तलब से भी कम आए
हमारे सामने साक़ी बा-साग़र-ए-ज़म आए

अजीब बात के कीचड़ में लहलहाए कँवल
फटे पुराने से जिस्मों पे सजके रेशम आए

मसीह कौन बने सारे हाथ आलूदा
लहू-लुहान है धर्ती कहाँ से मरहम आए

निगार-ए सुभू से पूछेंगे शब गुज़रने दो
के ज़ुल्मतों से उलझकर वो आई या हम आए

बस एक हम ही लिये जाएं दर्स-ए-इज्ज़-ओ-नियाज़
कभी तो अकड़ी हुई गर्दनों में भी ख़म आए