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\stitle{nigaar-e-shauq kii bebaakiyo.n se kyaa haasil}
\singers{Asrar Narvi #3}
निगार-ए-शौक़ की बेबाकियों से क्या हासिल
जो दिल उदास हो रंगीनियों से क्या हासिल
न अब वो रात न वो हुस्न-ए-गर्मी-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सुब्हू तुनक ताबियों सय क्या हासिल
फ़सुर्दगी की क़सम अज़्म ला मकाँ तक है
न पूछ दोस्त के तन्हाईयों से क्या हासिल
लहू लहू है उफ़क़ शाम मुज़महिल सी है
तुम्हीं बताओ के इन सुर्ख़ियों से क्या हासिल
जो बू-ए-गुल पे न हो उनकी दस्त्रस ऐ दिल
चमन में ऐसी भी पाबंदियों से क्या हासिल