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\stitle{diivaar-o-dar se utar ke parachhaa_iyaa.N bolatii hai.n}
\singers{Nida Fazli #29}



दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं
कोई नहीं बोलता जब तनहाइयाँ बोलती हैं

पर्देस के रास्ते में लुटते कहाँ हैं मुसाफ़िर
हर पेड़ कहता है क़िस्सा पुर्वाइयाँ बोलती हैं

मौसम कहाँ मानता है तहज़ीब की बन्धिशों को
जिस्मों से बाहर निकल के अन्गड़ाइयाँ बोलती हैं

सुन ने की मोहलत मिले तो आवाज़ है पतझरों में
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियाँ बोलती हैं