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\stitle{dil me.n ik lahar sii uThii hai abhii}
\singers{Nasir Kazmi #3}



दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी

शोर बर्पा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरि है अभी

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोट भी नई है अभी

याद के बेनिशान जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी

शहर की बेचराग़ गलियों में
ज़िंदगी तुझको ढूँढती है अभी

वक़्त अच्छा भी आयेगा "णसिर"
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी