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% nkazmi10.s isongs output
\stitle{dayaar-e-dil kii raat me.n chiraaG thaa jalaa gayaa}
\lyrics{Nasir Kazmi}
\singers{Nasir Kazmi}
% Contributed by Yogesh Sethi



दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ था जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया

%[dayaar = place, residence]

जुदाईओं के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भि नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया

ये सुबहो की सफ़ेदीयाँ, ये दो-पहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देख़ता हूँ, मैं कहाँ चला गया

पुकरती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गई वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उंहें या आसमान खा गया <ब्ऱ

वो दोस्ती तो ख़ैर अब, नसीब दुश्मना हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया

ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई, ये मैं कहाँ समा गया

गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अमल-कशों उठों कि आफ़ताब सिर पे आ गया