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\stitle{gaye dino.n kaa suraaG lekar kidhar se aayaa kidhar gayaa vo}
 
\singers{Nasir Kazmi #12}



गये दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मनूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो

ख़ुशी की रुत हो के ग़म का मौसुम नज़र उसे ढूँढती है हर दम
वो बू-ए-गुल था के नग़्मा-ए जान मेरे तो दिल में उतर गया वो

वो मैकदे को जगानेवाला वो रात की नींद उड़ानेवाला
न जाने क्या उस के जी में आई कि शाम होते ही घर गया वो

कुछ अब सम्भलने लगी है जाँ भि बदल चला रंग आस्माँ भी
जो रात भारी थी टल गैइ है जो दिन कड़ा था गुज़र गया वो

शिकस्ता पा राह में खड़ा हूँ गए दिनों को बुला रहा हूँ
जो काफ़िला मेरा हम-सफ़र था मिसल-ए-गर्द-ए-सफ़र गया वो

बस एक मंज़िल है बुल-हवस की हज़ार रस्ते हैं अहल-ए-दिल के
ये ही तो है फ़र्क़ मुझ में उस में गुज़र गया मैं ठहर गया वो

वो जिस के शाने पे हाथ रख कर सफ़र किया तूने मंज़िलों का
तेरी गली से न जाने क्यूँ आज सर झुकाये गुज़र गया वो

वो हिज्र कि रात का सितार वो हम-नफ़स हम-सुख़न हमारा
सदा रहे उस का नाम प्यारा सुना है कल रात मर गया वो

बस एक मोती सी छब दिखाकर बस एक मिट्ठी सी धुन सुना कर
सितारा-ए-शाम बन के आया बरंग-ए-ख़याल-ए-सहर गया वो

न अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की उदास बर्खा
यूँ ही ज़रा सी क़सक है दिल में जो ज़ख़्म गहरा था भर गया वो

वो रात का बे-नवा मुसाफ़िर वो तेरा शाइर वो तेरा "णसिर"
तेरी गली तक तो हम ने देखा फिर न जाने किधर गया वो