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% nkazmi19.s isongs output
\stitle{zabaa.N suKhan ko, suKhan baa.Nkapan ko tarasegaa}
\singers{Nasir Kazmi #19}
% Contributed by Khursheed Ahmed



ज़बाँ सुख़न को, सुख़न बाँकपन को तरसेगा
सुख़न-कदा मेरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगा

नये प्याले सही तेरे दौर में साक़ी
ये दौर मेरी शराब-ए-कोहन को तरसेगा

मुजेह तो ख़ैर वतन छोड़ के अमन न मिली
वतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगा

उंहीं के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़
ज़माना सोहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा

बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वरना
ये बाग़ साया-ए-सार्द-ओ-समाँ को तरसेगा

हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन
ज़मीं पानी को सूरज किरन को तरसेगा