% parvin04.s isongs output
\stitle{Khalish ajiib tarz-e-mulaaqaat ab ke bar rahii}
\lyrics{Parveen Shakir}
\singers{Parveen Shakir}
% Contributed By: Umang Bali
अजीब तर्ज़-ए-मुलाक़ात अब के बर रही
तुम्हीं थे बदले हुए या मेरी निगाहें थीं
तुम्हारी नज़रों से लगता था जैसे मेरी बजाये
तुम्हारे घर में कोई और शख़्स आया है
तुम्हारे औहदे की देनें तुम्हेन मुबारक
सो तुम ने मेरा स्वागत उसी तरह से किया
जो अफ़सराण-ए-हुकूमत के अएतक़ाद में है
तकल्लुफ़न मेरे नज़दीक आ के बैठ गए
फिर एहतमाम से मौसम का ज़िक्र छ्ड़ दिया
कुछ उस के बाद सियासत की बात भी निकली
अदब पर भी कोई दो चार तबसरे फ़रमाए
मगर न तुम ने हमेशा की तरह ये पूछा
क्या वक़्त कैसा गुज़रता है तेरा, जान-ए-हयात
पहाड़ दिन की अज़ीयत में कितनी शिद्दत है
उजाड़ रात की तन्हाई क्या क़यामत है
शबों की सुस्त रवी का तुझे भी शिकवा है
ग़म-ए-फ़िराक़ के क़िस्से, निशात-ए-वस्ल का ज़िक्र
रवायतुन ही सही, कोई बात तो करते