% parvin05.s isongs output
\stitle{kamaal-e-zabt ko Khud bhii to aazamauu.Ngii}
\lyrics{Parveen Shakir}
\singers{Parveen Shakir}
% Additions by Zulqarnain Khan
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़मौउँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजौउँगी
सपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों
मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पायेगा
मैं दिल में रोऊँगी, आँखों में मुस्कुराऊँगी
वो क्या गया के रफ़ाक़त के सारे लुत्फ़ गए
मैं किस से रूठ सकूँगी, किसे मनाऊँगी
वो इक रिश्ता-ए-बेनाम भी नहीं लेकिन
मैं अब भी उस के इशारों पे सर झुकाऊँगी
बिछा दिया था गुलाबों के साथ अपना वजूद
वो सो के उठे तो ख़्वाबों की राख उठाऊँगी
अब उस का फ़न तो किसी और से मन्सूब हुआ
मैं किस की नज़्म अकेले में गुनगुनाऊँगी
%[mansoob=attached]
जवज़ ढूँढ रहा था नैइ मोहब्बत का
वो कह रहा था के मैं उस को भूल जौउँगी
%[javaz = reason]