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% qasim01.s isongs output
\stitle{bedilii se ha.Nsane ko Khush-dilii na samajhaa jaae}
\lyrics{Pir Zada Qasim}
\singers{Pir Zada Qasim}
% Contributed by Fayaz Razvi



बेदिली से हँसने को ख़ुश-दिली न समझा जाए
ग़म से जलते चेहरे को रौशनी न समझा जाए

गह गह वहशत में घर की सिम्त जाता हूँ
इसको दश्त-ए-हैरत से वापसी न समझा जाए

लाख ख़ुश्गुमाँ दुनिया बाहिमी त'अल्लुक़ को
दोस्ती कहें लेकिन दोस्ती न समझा जाए

हम तो बस ये कहते हैं रोज़ जीने मरने को
आप चाहें कुछ समझें ज़िंदगी न समझा जाए

ख़ाक करने वालों की क्या अजीब ख़्वाहिश थी
ख़ाक होने वालों को ख़ाक ही न समझा जाए