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% qasim02.s isongs output
\stitle{ik sazaa aur asiiro.n ko sunaa dii jaae}
\lyrics{Pirzada Qasim}
\singers{Pirzada Qasim}
% Contributed by Fayaz Razvi



इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए
यानी अब जुर्म-ए-असीरे की सज़ा दी जाए

उसकी ख़्वाहिश है के अब लोग न रोएँ न हँसें
बेहिसी वक़्त की आवाज़ बना दी जाए

दश्त-ए-नादीदा की तहक़ीक़ ज़रूरी है मगर
पहले जो आग्लगी है वो बुझा दी जाए

सिर्फ़ जलना ही नहीं हमको भड़कना भी तो है
इश्क़ की आग को लाज़िम है हवा दी जाए

सिर्फ़ सूरज का निकलना है अगर सुबह तो फिर
इक शब और मेरी शब से मिला दी जाए

और इक ताज़ा सितम उसने किया इजाद
उसको इस बार ज़रा खुल के दुआ दी जाए