% qasim03.s isongs output
\stitle{Khuun se jab jalaa diyaa ek diyaa bujhaa huaa}
\singers{Pirzada Qasim #3}
ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ
फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ
एक ही दास्तान-ए-शब एक ही सिल-सिला तो है
एक दिया जला हुआ एक दिया बुझा हुआ
महफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गई
फिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआ
मुझको निशात फ़ुज़ूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ है
मेरा रफ़ीक़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआ
दर्द की कायनात में मुझसे भी रौशनी रही
वैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ
सब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गई
और मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ