% qasim05.s isongs output
\stitle{tumhe.n jafaa se na yuu.N baaz aanaa chaahiye thaa}
\singers{Pirzada Qasim #5}
% Contributed by Anwar Ansari
तुम्हें जफ़ा से न यूँ बाज़ आना चाहिये था
अभी कुछ और मेरा दिल दुखाना चाहिये था
तवील रात के पहलू में कब से सोई है
नवीद-ए-सुबह तुझे जाग जाना चाहिये था
बहुत क़ल्लाक़ हुआ हैरत ग़ज़ीदा तूफ़ाँ को
के कौन डूबे किंहें डूब जाना चाहिये था
बुझे चिराग़ों में कितने हैं जो जले ही नहीं
सवाद-ए-वक़्त इंहें जगमगाना चाहिये था
अजब न था के क़फ़स साथ लेके उड़ जाते
तड़पना चाहिये था फड़फढ़ाना चाहिये था
ये मेरी हार के कार-ए-जानाँ से हारा मगर
बिछड़ने वाले तुझे याद आना चाहिये था
तमान उम्र की आसुर्दगी-ए-वस्ल के बाद
फ़िराक़ आख़िरी धोका था खाना चाहिये था