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\stitle{ye mojazaa bhii muhabbat kabhii dikhaae mujhe}
\lyrics{Qateel Shifai}
\singers{Qateel Shifai}



ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आए मुझे

वो महरबाँ है तोप इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमाँ है तो सौ बार आज़माए मुझे

मैं अपने पाँव तले रौंदता हूँ साये को
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाए मुझे

मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
बरहना शहर में कोई नज़र न आए मुझे

वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आए मुझे

मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ "Qअतेएल"
ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाए मुझे