% qateel25.s isongs output
\stitle{hijr kii pahalii shaam ke saaye duur ufaq tak chhaaye the}
\singers{Qateel Shifai}
% Contributed by Mujahid Jafri
हिज्र की पहली शाम के साये दूर उफ़क़ तक छाये थे
हम जब उस के शहर से निकले सब रास्ते सँवलाये थे
जाने वो क्या सोच रहा था अपने दिल में सारी रात
प्यार की बातें करते करते उस के नैन भर आये थे
मेरे अन्दर चली थी आँधी ठीक उसी दिन पतझड़ की
जिस दिन अपने जूड़े में उसने कुछ फूल सजाये थे
उसने कितने प्यार से अपना कुफ़्र दिया नज़राने में
हम अपने ईमान का सौदा जिस से करने आये थे
कैसे जाती मेरे बदन से बीते लम्हों की ख़ुश्बू
ख़्वाबों की उस बस्ती में कुछ फूल मेरे हम-साये थे
कैसा प्यारा मन्ज़र था जब देख के अपने साथी को
पेड़ पे बैठी इक चिड़िया ने अपने पर फैलाये थे
रुख़्सत के दिन भीगी आँखों उस का वो कहना हाए "Qअतेएल"
तुम को लौट ही जाना था तो इस नगरी क्यूँ आये थे