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% qateel30.s isongs output
\stitle{ik-ik patthar jo.D ke mai.n ne jo diivaar banaa_ii hai}
\singers{Qateel Shifai #30}



इक-इक पत्थर जोड़ के मैं ने जो दीवार बनाई है
झाँखू उस के पीछे तो रुस्वाई ही रुस्वाई है

यों लगता है सोते जागते औरों का मोहताज हूँ
आँखें मेरी अपनी हैंपर उन में नींद पराई है

देख रहे हैं सब हैरत से नीले-नीले पानी को
पूछे कौन समंदर से तुझ में कितनी गहरई है

आज हुआ मालूम मुझे इस शहर के चंद सयानों से
अपनी राह बदलते रहना सबसे बड़ी दानाई है

%[daanaa_ii = cleverness]

तोड़ गये पैमान-ए-वफ़ा इस दौर में कैसे कैसे लोग
ये मत सोच "Qअतेएल" कि बस इक यार तेरा हरजाई है