% rkamil01.s isongs output
\stitle{kabhii aah lab pe machal ga_ii kabhii ashk aa.Nkh se Dhal gaye}
\singers{Rashid Kamil}
कभी आह लब पे मचल गई कभी अश्क आँख से ढल गये
वो तुम्हारे ग़म के चिराग़ हैं कभी बुझ गये कभी जल गये
मैं ख़याल-ओ-ख़्वाब की महफ़िलें न बक़द्र-ए-शौक़ सजा सका
तुम्हारी इक नज़र के साथ ही मेरे सब इरादे बदल गये
कभी रंग में कभी रूप में कभी चाँव में कभी धूप में
कहीं आफ़ताब-ए-नज़र हैं वो कहीं माहताब में ढल गये
जो फ़ना हुये ग़म-ए-इश्क़ में उंहें ज़िंदगी का न ग़म हुआ
जो न अपनी आग में जल सके वो पराई आग में जल गये
या उंहें भी मेरी तरह जुनूँ तो फिर उन में उम्झ में ये फ़र्क़ क्या
मैं गिरफ़्त-ए-ग़म से न बच सका वो हुदूद-ए-ग़म से निकल गये