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\stitle{Umiid  - vo subah kabhii to aaegii}
\lyrics{Sahir Ludhianvi}
\singers{Sahir Ludhianvi}



वो सुबह कभी तो आएगी

इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल धलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अम्रित की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूकी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

माना के अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज़्ज़त जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

दौलत के लिये जब औरत की इस्मत को ना बेचा जाएगा
चाहत को ना कुचला जाएगा, इज़्ज़त को ना बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्माएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

मजबूर बुड़ापा जब सूनी राहों की धूल न फँकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीक न माँगेगा
हक़ माँगने वालों को जिस दिन सुली न दिखाई जाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

फ़ाअक़ों की चिताओं पर जिस दिन इन्साँ न जलाए जाएंगे
सीने के दहकते दोज़ख में अरमाँ न जलाए जाएंगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अम्रित की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
वो सुबह न आये आज मगर, वो सुबह कभी तो आयेगी

वो सुबह कभी तो आएगी