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% sahir19.s isongs output
\stitle{jab kabhii un ke tavajjo me.n kamii paa_ii ga_ii}
\singers{Sahir Ludhianvi #19}
% Contributed by Sadiq Hasan Jafri



जब कभी उन के तवज्जो में कमी पाई गई
अज़ सर-ए-नव-ए-दास्तान-ए-शौक़ दोहराई गई

बिक चुके जब तेरे लब फिर तुझ को क्या शिकवा अगर
ज़िंदगानी बादा-ओ-साग़र से बहलाई गई

ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते
किन बहानों से तबियत राह पर लाई गई

हम करें तर्क-ए-वफ़ा अच्छा चलो यूं ही सही
और अगर तर्क-ए-वफ़ा से भी न रुस्वाई गई

कैसे कैसे चश्म-ओ-आरिज़ गर्द-ए-ग़म से बुझ गये
कैसे कैसे पैकरों की शान-ए-ज़ेबाई गई

दिल की धड़कन में तवज़्ज़ुन आ चला है ख़ैर हो
मेरी नज़रें बुझ गईं या तेरी रानाई गई

उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई