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\stitle{tumhaarii dost-navaazii me.n gar kamii hotii}
\lyrics{Salman Akhtar}
\singers{Salman Akhtar}



तुम्हारी दोस्त-नवाज़ी में गर कमी होती
ज़मीन टूट के तारों पे गिर गैइ होती

बहुत से लोग पशेमान हो गए होते
जो बात सच थी अगर वो कही गैइ होती

ख़ुशी ने ठीक किया जो हमसे दूर-दूर रही
हमारे पास जो आती तो रो पड़ी होती

तुझे भी लोग हमारी तरह समझ लेते
हमारे जैसो से तेरी अगर दोस्ती होती

मैं रौशनी के सराबों से तो बचा रहता
नसीब में जो ज़रा और तीरगी होती