% shakeb02.s isongs output
\stitle{murjhaa ke kaalii jhiil me.n girate huye bhii dekh}
\singers{Shakeb Jalali #2}
मुर्झा के काली झील में गिरते हुये भी देख
सूरज हूँ मेरा रंग मगर दिन ढले भी देख
काग़ज़ की कतरने को भी कहते हैं लोग फूल
रंगों का ऐतबार ही क्या सूँघ के भी देख
हर चंद राख होके बिखरना है राह में
जलते हुये परों से उड़ा हूँ मुझे भी देख
तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ
आँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख
तू ही बरहना-पा नहीं इस जलती रेत पर
तलवों में जो हवा के हैं वो आबले भी देख
%[barahanaa-paa = naked feet; aabale = blisters]
इंसान नाचता है यहाँ पुतलियों के रंग
दुनिया में आ गया है तो इस के मज़े भी देख
बिछती थीं जिस की राह में फूलों की चादरें
अब उस की ख़ाक घास के पैरों तले भी देख
क्या शाख़-ए-बा-समर है जो तकता है फ़र्श को
नज़रें उठा "षकेब" कभी सामने भि देख
%[shaaK-e-baa-samar = fruit laden branch]