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% shakil13.s isongs output
\stitle{bas ik nigaah-e-karam hai kaafii agar u.nhe.n pesh-o-pas nahii.n hai}
\singers{Shakeel Badayuni #13}
% Contributed by Mujahid Jafri



बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी
अगर उंहें पेश-ओ-पस नहीं है
ज़ाहे तमन्ना की मेरी फ़ितरत
असीर-ए-हिर्स-ओ-हवस नहीं है

नज़र से सय्याद दूर हो जा यहाँ
तेरा मुझ पे बस नहीं है
चमन को बर्बाद करनेवाले
ये आशियाँ है क़फ़स नहीं है

किसी के जल्वे तड़प रहे हैं
हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद के आगे
हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद के आगे
निगाह के दस्तरस नहीं है

जहाँ की नयरंगीयों से यक्सर
बदल गई आशियाँ की सूरत
क़फ़स समझती हैं जिन को नज़रें
वो दर-हक़ीक़त क़फ़स नहीं है

कहाँ के नाले कहाँ की आहें
जमी हैं उन की तरफ़ निगाहें
कुछ इस क़दर मह्व-ए-याद हूँ मैं
कि फ़ुर्सत-ए-यक-नफ़स नहीं है

तसव्वुर-ए-इश्रत-ए-गुज़िश्ता का
हुस्न-ए-तासीर अल्लाह अल्लाह
वही फ़ज़ायेँ वही हवायेँ
चमन से कुछ कम क़फ़स नहीं है

किसी के बे'एतनाइयों ने
बदल ही डाला निज़ाम-ए-गुलशन
जो बात पहले बहार में थी
वो बात अब के बरस नहीं है

ये बू-ए-सुम्बुल, ये ख़ांदा गुल और
आह! ये दर्द भरी सदायेँ
क़फ़स के अंदर चमन हो शायद
चमन के अंदर क़फ़स नहीं है

न होश-ए-ख़िल्वत न फ़िक्र-ए-महफ़िल
अयाँ हो अब किस पे हालात-ए-दिल
मैं आप ही अपना हम-नफ़स हूँ
मेरा कोई हम-नफ़स नहीं है

करें भी क्या शिकवा-ए-ज़माना
कहें भी क्या दर्द का फ़साना
जहाँ में हैं लाख दुश्मन-ए-जाँ
कोई मसीहा नफ़स नहीं है

सुनी है अहल-ए-जुनूँ ने अक्सर
ख़ामोशी-ए-मर्ग की सदायेँ
सुना ये था कारवान-ए-हस्ती
रहीन-ए-बांग-ए-जरस नहीं है

चमन की आज़ादियाँ मुअख़्ख़र
तसव्वुर-ए-आशियाँ मुक़द्दम
ग़म-ए-असीरीहै ना-मुकम्मल
अगर ग़म-ए-ख़ार-ओ-ख़स नहीं है

न कर मुझे शर्म्सार नासेह
मैं दिल से मजबूर हूँ कि जिस का
है यूँ तो कौन-ओ-मकाँ पे क़ाबू
मगर मुहब्बत पे बस नहीं है

कहाँ वो उम्मीद आमद आमद
कहाँ ये ईफ़ाए अहद-ए-फ़र्दा
जब ऐतबार-ए-नज़र न था कुछ
अब ऐतबार-ए-नफ़स नहीं है

वहीं हैं नग़्में वही है नाले
सुन ऐ मुझे भूल जाने वाले
तेरी सम'अत से दूर हूँ मैं
जभी तो नालों में रस नहीं है

"षकेएल" दुनिया में जिस को देखा
कुछ उस की दुनिया ही और देखी
हज़ार नक़्क़ाद-ए-ज़िंदगी हैं मगर
कोई नुक्तारस नहीं है