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% shamim02.s isongs output
\stitle{zamii.n pe rah ke dimaaG aasmaa.N se milataa hai}
\singers{Shamim Jaipuri #2}



ज़मीं पे रह के दिमाग़ आस्माँ से मिलता है
कभी ये सर जो तेरे आस्ताँ से मिलता है

इसी ज़मीं से इसी आस्माँ से मिलता है
ये कौन देता है आख़िर कहाँ से मिलता है

सुना है लूट लिया है किसी को रहबर ने
ये वाक़्या तो मेरी दास्ताँ से मिलता है

दर-ए-हबीब भी बुत-कदा भी काबा भी
ये देखना है सुकूँ कहाँ से मिलता है

तलब न हो तो किसी दर से कुछ नहीं मिलता
अगर तलब हो तो दोनों जाअँ से मिलता है

वहीं चलो वहीं अब हम भी हाथ फैलायें
"षमिम" सारे जहाँ को जहाँ से मिलता है