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\stitle{raham ai Gam-e-jaanaa.N baat aa ga_ii yaa.N tak}
\singers{Shamim Jaipuri #4}
रहम ऐ ग़म-ए-जानाँ बात आ गई याँ तक
दश्त-ए-गर्दिशी-ए-दौराँ और मेरे गरेबाँ तक
हमसफ़ीर फिर कोई हादसा हुआ शायद
इक सजब उदासी है गुल्सिताँ से ज़िंदाँ तक
इक हम ही लगायेंगे ख़ार-ओ-ख़स को सीने से
वरना सन चमन में हैं मौसम-ए-बहाराँ तक
मेरे दस्तक-ए-वहशत को आज रोक लो वरना
फ़ासला बहुत कम हैहाथ से गरेबाँ तक
है "षमिम" अज़ल ही से सिल-सिला मुहब्बत का
हल्क़ा-ए-सिलासिल से गेसू-ए-परेशाँ तक