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\stitle{dil liyaa jis ne bevafaa_ii kii}
\singers{Shefta #1}



दिल लिया जिस ने बेवफ़ाई की
रस्म है क्या ये दिल-रुबाई की

तुम को अंदेशा-ए-गिरफ़्तारी है
याँ तवक़्क़ो नहीं रिहाई की

वस्ल में किस तरह हूँ शादि-ए-मर्ग
मुझ को ताक़त नहीं जुदाई की

एक दिन तेरे घर में आना है
बख़्त-ए-ताले ने गर रसाई की

दिल लगाया सो नासहों को क्या
बात जो अपने जी में आई, की

"षेफ़्त" वो कि जिस ने सारी उम्र
दीन-दारी-ओ-पारसाई की