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\stitle{ai ishq na chhe.D aa aa ke hame.n}
\singers{Akhtar Sheerani #11}
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें
हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशद हैं हम
तू और हमें नाशाद न कर
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ
ये ताज़ा सितम इजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बेदाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
जिस दिन से मिले हैं दोनों का
सब चैन गया आराम गया
चेहरों से बहार-ए-सुबह गई
आँखों से फ़रोग़-ए-शाम गया
हाथों से ख़ुशी का जाम छूटा
होंठों से हँसी का नाम गया
ग़म्ग़ीं न बना नाशाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
रातों को उठ उठ रोते हैं
रो रो कर दुआयें करते हैं
आँखों में तसव्वुर दिल में ख़लिश
सर धुनते हैं आहें भरते हैं
ऐ इश्क़ ये कैसा रोग लगा
जीते हैं न ज़ालिम मरते हैं
ये ज़ुल्म तो ऐ जल्लाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
ये रोग लगा है जब से हमें
रन्जीदा हूँ मैं बीमार है वो
हर वक़्त तपिश हर वक़्त ख़लिश
बे-ख़्वाब हूँ मैं बेदार ह वो
जीने से इधर बेज़ार हूँ मैं
मरन्बे पे उधर तय्यार है वो
और ज़ब्त कहे फ़रियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
बेदर्द ज़रा इन्साफ़ तो कर
इस उम्र में और मग़्मूम है वो
फूलों की तरह नाज़ुक है अभी
तारों की तरह मसूम है वो
ये हुस्न सितम ये रन्ज ग़ज़ब
मजबूर हूँ मैं मज़लूम है वो
मज़लूम पे यूँ बेदाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
ऐ इश्क़ ख़ुदारा देख कहीं
वो शोख़ हसीं बदनाम न हो
वो माह-ए-लक़ा बदनाम न हो
वो ज़ोह्रा-जबीं बदनाम न हो
नामूस का उस को पास रहे
वो पर्दा-नशीं बदनाम न हो
उस पर्दा-नशीं को याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
उम्मीद की झूठी जन्नत के
रह रह के न दिखला ख़्वाब हमें
आईन्दा के फ़र्ज़ी इश्रत के
वादे से न कर बेताब हमें
कहता है ज़माना जिस को ख़ुशी
आती है नज़र कामयाब हमें
छोड़ ऐसी ख़ुशी को याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
दो दिन ही में अहद-ए-तिफ़ली के
मासूम ज़माने भूल गये
आँखों से वो ख़ुशियाँ मिट सी गईं
लब के वो तराने भूल गये
उन पाक बहिश्ती ख़्वाबों के
दिल्चस्प फ़साने भूल गये
उन ख़्वाबों से यूँ आज़ाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
आँखों को ये क्या आज़ार हुआ
हर जज़्ब-ए-निहाँ पर रो देना
आहन्ग-ए-तरब पे झुक जाना
आवाज़-ए-फ़ुग़ाँ पर रो देना
बर्बत की सदा पर रो देना
मुत्रिब के बयाँ पर रो देना
एहसास को ग़म बुनियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
जी चाहता है इक दूसरे को
यूँ आठ पहर हम करें
आँखों में बसायें ख़्वाबों को
और दिल को ख़याल आबाद करें
ख़िल्वत में भी जो जल्वत का सामाँ
वहदत को दुई से शाद करें
ये आरज़ूएं इजाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
वो राज़ है ये ग़म आह जिसे
पा जाये कोई तो ख़ैर नहीं
आँखों से जब आँसू बहते हैं
आ जाये कोई तो ख़ैर नहीं
ज़ालिम है ये दुनिया दिल को
यहाँ भा जाये कोई ख़ैर नहीं
है ज़ुल्म मगर फ़रियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
दुनिया का तमाशा देख लिया
ग़म्ग़ीं सी है बेताब सी है
उम्मीद यहाँ इक वहम सी है
तस्कीन यहाँ इक ख़्वाब सी है
दुनिया में ख़ुशी का नाम नहीं
दुनिया में ख़ुशी नयाब सी है
दुनिया में ख़ुशी को याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर