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% siddiqui04.s isongs output
\stitle{ek muddat hu_ii ek zamaanaa huaa}
\singers{Sagar Siddiqui #4}
% Contributed by Sudhanshu Ambiye



एक मुद्दत हुई एक ज़माना हुआ
ख़ाक-ए-गुलशन में जब आशियाना हुआ

ज़ुल्फ़-ए-बरहम की जब से शनासाई हुई
ज़िंदगी का चलन मुज्रेमाना हुआ

फूल जलते रहे चाँद हँसते रहा
आरज़ू का मुक़म्मल फ़साना हुआ

दाग़ दिल के शहंशाह के सिक्के बने
दिल का  मुफ़्लिस-कदा जब ख़ज़ाना हुआ

रहबर ने पलट कर न देखा कभी
रह्र-ओ-रास्ते का निशाना हुआ

हम जहाँ भी गये ज़ौक़-ए-सजदा लिये
हर जगह आप का आसताना हुआ

देख मिज़राब से ख़ून टपकने लगा
साज़ का तार मर्ग़-ए-तराना हुआ

पहले होती थी कोई वफ़ा-परवरी
अब तो "Sआग़र" ये क़िस्सा पूराना हुआ