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\stitle{aaj ham bichha.De hai.n to kitane ra.ngiile ho gaye}
\singers{Shahid Kabir #6}



आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गये
मेरी आँखें सुर्ख़ तेरे हाथ पीले हो गये

कब की पत्थर हो चुकी थी मुंतज़िर आँखें मगर
चू के देखा तो मेरे हाथ गीले हो गये

जाने क्या एहसास साज़-ए-हुस्न की तारों में हैं
जिन को छूते हि मेरे नग़्में रसीले हो गये

अब कोई उम्मीद है "षहिद" न कोई आरज़ू
आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गये