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\stitle{na ghar baar na ko_ii Thikaanaa Khaanaabadosh hai.n}
\singers{Saeed Rahi #15}
न घर बार न कोई ठिकाना ख़ानाबदोश हैं
अपना काम है चलते जाना ख़ानाबदोश हैं
चाँद और सूरज साथी सदियों सदियों के
दोनों से रिश्ता है पुराना ख़ानाबदोश हैं
रंग बदलते मौसम जैसी अपनी हस्ती है
बारिश व धूप से क्या घबराना ख़ानाबदोश हैं
अपने लिये हैं दोनों बराबर ऐ दुनिया वालो
क्या बुतख़ाना क्या मैख़ान ख़ानाबदोश हैं