% tabassum01.s isongs output
\stitle{hazaar gardish-e-shaam-o-sahar se guzare.n hai.n}
\singers{Sufi Ghulam Mustafa Tabassum #1}
हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रें हैं
वो क़ाफ़िले जो तेरी रहगुज़र से गुज़रें हैं
अभी हवस को मय्यस्सर नहीं दिलों का गुदज़
अभी ये लोग मुक़ाम-ए-नज़र से गुज़रें हैं
हर एक नक़्श पे था तेरे नक़्श-ए-पा का गुमाँ
क़दम क़दम पे तेरी रहगुज़र से गुज़रें हैं
न जाने कौन सी मंज़िल पे जा के रुक जाएं
नज़र के क़ाफ़िले दीवर-ओ-दर से गुज़रें हैं
कुछ और फैल गैइं दर्द की कठिन राहें
ग़म-ए-फ़िराक़ के मारे जिधर से गुज़रें हैं
जहाँ सुरूर मय्यस्सर था जाम-ओ-मय के बग़ैर
वो मयकदे भी हमारी नज़र से गुज़रें हैं