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\stitle{nazar me.n Dhal ke ubharate hai.n dil ke afasane}
\singers{Sufi Ghulam Mustafa Tabassum #4}
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़सने
ये और बात है दुनिया नज़र न पहचने
ये बज़्म देखी है मेरी निगाह ने कि जहाँ
बग़ैर शम भी जलते रहे हैं परवाने
ये क्या बहार का जौबन है ये क्या नशात का रंग
फ़सुर्दा मयकदे वाले उदास मयख़ाने
मेरे नदीम तेरि चश्म-ए-इल्तफ़ात की ख़ैर
बिगड़ बिगड़ के सँवरते गये हैं अफ़साने
ये किस की चश्म-ए-फ़ुसूँसाज़ का करिश्मा है
कि टूत कर भी सलामत हैं दिल के बुतख़ाने