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\stitle{ik na ik shammaa a.ndhere me.n jalaaye rakhiye}
\singers{Tariq Badayuni}
इक न इक शम्मा अंधेरे में जलाये रखिये
सुबह होने को है माहौल बनाये रखिये
जिन के हाथों से हमें ज़ख़्म-ए-निहाँ पहुँचे हैं
वो भी कहते हैं कि ज़ख़्मों को छुपाये रखिये
कौन जाने कि वो किस राह-गुज़र से गुज़रे
हर गुज़र-गाह को फूलों से सजाये रखिये
दामन-ए-यार की ज़ीनत न बने हर आँसू
अपनी पलकों के लिये कुछ तो बचाये रखिये