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\stitle{sa.ng jab aa_iinaa dikhaataa hai}
\singers{Umeed Fazli #1}



संग जब आईना दिखाता है
तेशा क्या क्या नज़र चुराता है

सिल-सिला प्यास का बताता है
प्यास दरिया कहाँ बुझाता है

रैग-ज़रों में जैसे तपती धूप
यूँ भी उस का ख़याल आता है

सुन रहा हूँ ख़िराम-ए-उम्र की चाप
अक्स आवाज़ बनता जाता है

वो भी क्या शख़्स है के पास आ कर
फ़ासले दूर तक बिछाता है

घर तो ऐसा कहाँ था लेकिन
दर-बदर हैं तो याद आता है