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\stitle{kaash mai.n tere hasiin haath kaa ka.ngan hotaa}
\singers{Wasi Shah #2}



काश मैं तेरे हसीन हाथ का कंगन होता

तू बड़े प्यार से बड़े चाओ से बड़े अरमान के साथ
अपनी नाज़ुक सी कलाई में चढ़ाती मुझको
और बेताबी से फ़ुर्क़त के ख़िज़ाँ लम्हों में
तू किसी सोच में डूबी जो घुमाती मुझको
मैं तेरे हाथ की ख़ुश्बू से महक सा जाता
जब कभी "मोओद" में आ कर मुझे चूमा करती
तेरे होंठों की शिद्दत से मैं दहक सा जाता

रात को जब भी तू नींदों के सफ़र पर जाती
मर-मरी हाथ का इक तकिया बनाया करती
मैं तेरे कान से लग कर कई बातें करता
तेरी ज़ुल्फ़ों को तेरे गाल को चूमा करता
जब भी तू बंद क़बा खोलने लगती जानाँ
अपनी आँखों को तेरे हुस्न से खेरा करता
मुझ को बेताब सा रखता तेरी चाहत का नशा
मैं तेरी रूह के गुलशन में महकता रहता
मैं तेरे जिस्म के आँगन में खनकता रहता
कुछ नहीं तो यही बेनाम सा बंधन होता

काश मैं तेरे हसीन हाथ का कंगन होता