% yahya01.s isongs output
\stitle{rah-e-aashiqii ke maare rah-e-aam tak na pahu.Nche}
\singers{Yahya Jasdanwalla}
रह-ए-आशिक़ी के मारे रह-ए-आम तक न पहुँचे
कभी सुब्ह तक न पहुँचे, कभी शाम तक न पहुँचे
मुझे मस्त अगर बना दे ये निगाह-ए-मस्त तेरी
मेर हाथ क्या नज़र भी कभी जाम तक न पहुँचे
मुझे अपनी बेकसी का नहीं ग़म ख़याल ये है
कहीं बात बड़ते बड़ते तेरे नाम तक न पहुँचे
जो ये दौर बेवफ़ा है तेर ग़म तो मुस्तक़िल हो
वो हयात-ए-आशिक़ी क्या जो दवाम तक न पहुँचे
%[mustaqil = permanent; dawaam = infinity]
ये अनोखी बरहमी है के न भूले से लबों पर
बसबील-ए-तज़किरा भी मेरे नाम तक न पहुँचे
%[barahamii = injustice; basabiil-e-tazakiraa = in the course of discussion]
कहीं इस तरह भी रूठे न किसी से कोई 'यह्य'
के पयाम तक न आए के सलाम तक न पहुँचे