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% zafar02.s isongs output
\stitle{biich me.n pardaa doyii kaa thaa jo haayal uTh gayaa}
\singers{Bahadur Shah Zafar}
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बीच में पर्दा दोयी का था जो हायल उठ गया
ऐसा कुछ देखा के दुनिया से मेरा दिल उठ गया
शमा ने रो रो के काटी रात सूली पर तमाम
शब को जो महफ़िल से तेरी ऐ ज़ेब-ए-महफ़िल उठ गया
मेरी आँखों में समाया उस का ऐसा नूर-ए-हक़
शौक़-ए-नज़्ज़ारा ऐ बद्र-ए-कामिल उठ गया
ऐ ज़फ़र क्या पूछता है बेगुनाह-ओ-बर-गुनह
उठ गया अब जिधर को वास्ते क़ातिल उठ गया