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\stitle{ja kahiyo un se nasiim-e-sahar, meraa chain gayaa merii nii.nd gaii}
\singers{Bahadur Shah Zafar}



ज कहियो उन से नसीम-ए-सहर, मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ
तुम्हें मेरी न मुझको तुम्हारी ख़बर, मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ

न हरम में तुम्हारे यार पता न सुराग़ दैर में है मिलता
कहाँ जा के देखूँ मैं जाऊँ किधर मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ

ऐ बादशाह-ए-ख़ुबाँ-ए-जहाँ तेरी मोहिनी सुरत पे क़ुर्बाँ
की मैंए जो तेरी जबीं पे नज़र, मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ

हुई बद-ए-बहारी चमन में अयाँ, गुल बुटी में बाक़ी रही न फ़िज़ा
मेरी शाख़-ए-उम्मीद न लाई सँवर, मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ

अए बर्क़-ए-तजल्लि बहर-ए-ख़ुदा, न जला मुझे हिज्र में शम्मा सा
मेरी ज़ीस्त है मिस्ल-ए-चिराग़-ए-सहर, मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ

कहता है यही रो रो के 'ज़फ़र', मेरी आह-ए-रसा का हुआ न असर
तेरी हिज्र में मौत न आई अभी, मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ

यही कहना था शेरो के आज ज़फ़र मेरी आह-ए-रसा में हुआ न असर
तेरे हिज्र में मौत न आई मगर मेरा चैन गया मेरी नींद गैइ